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राम-नाम-महिमा / तुलसीदास/ पृष्ठ 3
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राम-नाम-महिमा-2
(93)
का कियो जोगु अजामिलजू, गनिकाँ कबहीं मति पेम पगाई ।
ब्याध को साधु पनो कहिए, अपराध अगाधनि में ही जनाई। ।
करूनाकरकी करूना हित, नाम-सुहेत जो देत दगाई।
काहेको खीझिअ , रीझिअ पै, तुलसीहु सों है, बलि सोइ सगाई।।
(94)
जे मद-मार -बिकार भरे, ते अचार-बिचार समीप न जाहीं।
है अभिमानु तऊ मनमें , जनु भाषिहै दूसरे दीनन पाहीं?।।
जौं कछु बात बनाइ कहौं , तुलसी तम्हमें , तुम्हहू उर माहीं।
जानकीजीवन! जानत हौं, हम हैं तुम्हरे , तुम्ह में , सकु नाहीं।।