भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम-नाम-महिमा / तुलसीदास/ पृष्ठ 5

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:20, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


राम-नाम-महिमा-4
 
 (97)
 
खेती न किसान को, भिखारी केा न भीख ,बलि,
 बनिकको बनिज, न चाकरको चाकरी।

 जीविकाबिहीन लोग सीद्यमान सोचबस,
 कहैं एक एकन सों ‘कहाँ जाई , का करी?’,

 बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।

दारिद-दसानन दबाई दुनी , दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।।


(98)

कुल-करतुति -भूति-कीरति -सुरूप-गुन-
 जौबन जरत जुर, परै न कल कहीं।

 राजुकाजु कुपथु , कुसाज भोग रोग ही के,
 बेद-बुध बिद्या पाइ बिबस बलकहीं।।

गति तुलसीकी लखै न कोउ , जो करत,
 पब्बयतें छार, छारै पब्बय पलक हीं ।ं

कासों कीजै रोषु , दोषु दीजै काहि, पाहि राम!
कियो कलिकाल कुलि खललु खलक हीं।।