भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं पृथ्वी हूँ / नरेश मेहन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:29, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश मेहन |संग्रह=पेड़ का दुख / नरेश मेहन }} {{KKCatKavita}} <…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं पृथ्वी हूँ
तुम्हारी जननी
इसीलिए तुम
मुझे कहते हो
धरती मां।
मेरा काम
सिर्फ देना है।
तुम एक दाना डालते हो
मैं तुम्हें
हजारों दाने देती हूँ।
तुम
एक पेड़ लगाते हो
मैं तुम्हें
हजारों फल देती हूँ
फिर भी
न जाने
क्या ढूंढते हो
मेरे गर्भ में
और करते हो विस्फोट
टटोलते हो
मेरे अंतस को।
मेरे अंतस में
तुम्हारे लिए
अथाह मुहब्बत के सिवाय
कुछ भी नहीं है।
मेरे पुत्रों।
ठीक नहीं है।
परीक्षा लेना
अपनी मां की।