भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हरियाली - १ / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=नए घर में प्रवेश / नरेश अग्…)
फल गिरे नहीं की
वृक्षों का काम फिर से शुरू
और था कितना बचकाना प्रयास मेरा
सब कुछ देख लेना चाहता था
अपनी खुली-खुली आँखों से
और हँसते होंगे वृक्ष भी मुझ पर
कितना सारा समय तो निकाल ही दिया
चाँद की तरह मेरी जिन्दगी
कभी पूरी की पूरी
फिर घटती - बढ़ती हुई
हरियाली तुम भी तो इसी तरह हो ।