भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मछुआरा / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:28, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=नए घर में प्रवेश / नरेश अग्…)
सुबह - सुबह
अपनी छोटी सी नाव और जाल लिए
निकल पड़ा है मछुआरा
बीचों-बीच समुद्र में
इतना शक्तिशाली वेग समुद्र का
और वो अकेला
थोड़ा सा ज्ञान नौका चलाने का
और थोड़ी सी ताकत तैरने की
भाग्य ने दिया जब तक साथ,
बने रहे तब तक
अथवा गये तो फिर लौटे ही नहीं
यह नाव और जाल
जैसा उसका घोड़ा और तलवार
छीनना है भोजन समुद्र से
और कितना नम्र होगा समुद्र
जो हर बार जीतने उसे देता होगा ।