भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नदियों का मिलन / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=सबके लिए सुंदर आवाजें / नरे…)
दो नदियों का मिलना कितना अच्छा लगता है
जैसे दो दिलों का मिलन हो, यह
किसी एक का झुकना नहीं
बल्कि आत्म समर्पण एक-दूसरे के लिए
और बहती हैं यहां दो नदियां एक होकर
अपनी तीव्र रफ्तार से
और लबालब होकर भर जाते हैं
उनके तट जल से।
चाहे कितना ही सुहावना मौसम क्यों न हो यहां का
कोई मतलब नहीं नदी को इससे
उसका काम ही है बहते जाना
बढ़ते जाना समुद्र तल की ओर
और जहां संगम हो तीन नदियों का
कितना सारा बल होगा उस धारा में
यह बात वहां के बाशिंदे ही जानें ।