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नजरुल स्मृति / समीर बरन नन्दी
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तीस वर्षो तक गूँजती रही - अग्निवीणा ।
न तुम गा पाए ।
गाया और सुना केवल पक्षघात ने ।
अग्निवीणा बजाते रहे तुम ।
प्रिय ! मौत धीरे-धीरे
बैठ गई तुममे पक्षाघात बन ।
अचानक तुम चुप हो गए ।
सब नहीं, पर विद्रोही बनते लोग
आज भी गाते हैं - तुम्हारी अग्निवीणा ।