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एक और नाव / नवनीत पाण्डे

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समंदर आज है
सारा घर, आंगन
घर अब कहां है?
समंदर-समंदर
समंदर में
डरी, सहमी, निस्तेज हजारों आंखें
तलाश रही है घर
शरीर बन गए हैं नाव
पहुंचाने को पार
पर कहां?
बरसने वाले पैकेट
लपकने की होड़
क्या पूर देगी दौड़
पैकेट थामे हाथ
बनते जा रहे हैं नाव
नाव पर सवार है
पैकेट थामे एक और नाव