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नदी का यह गीत होना / कुमार रवींद्र
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हाँ, सुनें तो
यह नदी फिर
गीत मीठे गा रही है
नदी का यह गीत होना
सृष्टि का ऋतु-पर्व होना है
नेह-जल से चर-अचर
सारी दिशाओं को भिगोना है
हाँ, सुनें तो
नदी बरखा-राग से
आकाश को नहला रही है
गुनगुनाती नदी यह
हर साँस में चुपचाप बहती है
राख की पगडंडियों से
जन्म का इतिहास कहती है
हाँ, सुनें तो
बाँसुरी की धुन सुरीली
इसी से तो आ रही है
गीत जब होती नदी है
देवता भी मंत्र गाते हैं
रात भर आकाशगंगा में
भोर के सपने नहाते हैं
हाँ, सुनें तो
नदी के सँग साँस भी यह
गीत-कसमें खा रही है