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घटना के तेवर भी देखो / कुमार रवींद्र
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घटना देखो
घटना के तेवर भी देखो
सुबह गिरीं जुड़वाँ मीनारें
विश्वहाट की
आँख खुल गई प्रलयंकर
शिव के ललाट की
झुलसी धरती
जलते ये सागर भी देखो
सुनो, चल रहा हाँका
आए चतुर शिकारी
साथ लाए हैं नई हवाएँ
वे हत्यारी
झील-किनारे
ढेर अस्थि-पंजर भी देखो
नई सदी है
आसमान हर ओर धुआँए
आये महुआवन से
हाथी भी पगलाए
क़त्ले-आम से
ज़ख़्मी गाँव-शहर भी देखो