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गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 10

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भाग-2 अयोध्या काण्ड प्रारंभ
 
1(राज्याभिषेक की तैयारी)
  
नृपकर जोरि कह्यो गुर पाही।
तुम्हरी कृपा असीस, नाथ! मेरी सबै महेस निबाहीं।1।

राम होहिं जुबराज जियत मेरे, यह लालच मन माहीं।
बहुरि मोहिं जियबे-मरिबेकी चित चिंता कहु नाहीं। 2।

महाराज, भलो काज बिचार्यो बेगि बिलंब न कीजै।
बिधि दाहिनो होइ तौ सब मिलि जनम-लाहु लुटि लीजै।3।

सुनत नगर आनंद बधावन, कैकेयी बिलखानी।
तुलसिदास देवमायाबस कठिन कुटिलता ठानी।4।