भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिड़िया नहीं हूँ मैं / प्रतिभा कटियार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 25 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा कटियार }} {{KKCatKavita}} <poem> चिडिय़ा नहीं हूँ मै…)
चिडिय़ा नहीं हूँ मैं
कि आएगा कोई आखेटक
बिछा देगा जाल
और फँस जाऊँगी मैं ।
धरती नहीं हूँ मैं कि
दुनिया भर के अवसाद
तकलीफ़ें समाकर अपने भीतर
लहराती रहूँगी सदा ।
आसमान नहीं हूँ मैं
कि सिर्फ़ देखती रहूँ दूर से
सब कुछ होते हुए
कर न सकूँ कुछ भी ।
डरो नहीं, आग भी नहीं हूँ मैं
कि लगाओगे हाथ
और जल जाओगे तुम ।
नेह की एक बूँद हूँ
जो नेह से पिघल जाती है
बादल बनकर बरस जाती है
पूरी धरती पर, समंदर पर
दरख़्तों पर
कायनात के इस छोर से
उस छोर तक
नेह ही नेह...