भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात / नचिकेता
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 28 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नचिकेता }} Category:गीत पाखी लौट घरों को आए अंधकार ने पर फै...)
पाखी लौट घरों को आए
अंधकार ने पर फैलाए
थकान मिटाने को दिन भर की
सोयीं आँखें गाँव-नगर की
घर, आँगन, छप्पर अलसाए
अंधकार ने पर फैलाए
जागी दुनिया आसमान की
अगवानी करने विहान की
तारों के मुखड़े मुस्काए
अंधकार ने पर फैलाए
नई उमंग लिए आएँगे
श्रम के गीत पुन: गाएँगे
धरती के बेटे तरुणाए
अंधकार ने पर फैलाए