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राग मलार
कोसलरायके कुअँरोटा |
राजत रुचिर जनक-पुर पैठत स्याम गौर नीके जोटा ||
चौतनि सिरनि, कनककली काननि, कटि पट पीत सोहाये |
उर मनि-माल, बिसाल बिलोचन, सीय-स्वयम्बर आये ||
बरनि न जात, मनहिं मन भावत, सुभग अबहिं बय थोरी |
भई हैं मगन बिधुबदन बिलोकत बनिता चतुर चकोरी ||
कहँ सिवचाप, लरिकवनि बूझत, बिहँसि चितै तिरछौंहैं |
तुलसी गलिन भीर, दरसन लगि लोग अटनि आरोहैं ||