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गीतावली पद 81 से 90 तक/पृष्ठ 4

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राग टोड़ी
राजा रङ्गभूमि आज बैठे जाइ जाइकै |
आपने आपने थल, आपने आपने साज,
आपनी आपनी बर बानिक बनाइकै ||

कौसिक सहित राम-लषन ललित नाम,
लरिका ललाम लोने पठए बुलाइकै |
दरसलालसा-बस लोग चले भाय भले,
बिकसित-मुख निकसत धाइ धाइ कै ||

सानुज सानन्द हिये आगे ह्वै जनक लिये,
रचना रुचिर सब सादर देखाइकै |
दिये दिब्य आसन सुपास सावकास अति,
आछे आछे बीछे बीछे बिछौना बिछाइकै ||

भूपतिकिसोर दुहुँ ओर, बीच मुनिराउ
देखिबेको दाउँ, देखौ देखिबो बिहाइकै |
उदय-सैल सोहैं सुन्दर कुँवर, जोहैं,
मानौ भानु भोर भूरि किरनि छिपाइकै ||

कौतुक कोलाहल निसान-गान पुर, नभ
बरषत सुमन बिमान रहे छाइकै |
हित-अनहित, रत-बिरत बिलोकि बाल,
प्रेम-मोद-मगन जनम-फल पाइकै ||

राजाकी रजाइ पाइ सचिव-सहेली धाइ,
सतानन्द ल्याए सिय सिबिका चढ़ाइकै |
रुप-दीपिका निहारि मृग-मृगी नर-नारि,
बिथके बिलोचन-निमेषै बिसराइकै ||

हानि, लाहु, अनख, उछाहु, बाहुबल कहि
बन्दि बोले बिरद अकस उपजाइकै |
दीप दीपके महीप आए सुनि पैज पन,
कीजै पुरुषारथको अवसर भौ आइकै ||

आनाकानी, कण्ठ-हँसी मुँहा-चाही होन लगी,
देखि दसा कहत बिदेह बिलखाइकै |