(52)
जननी निरखति बान-धनुहियाँ |
बार-बार उर नैननि लावति प्रभुजूकी ललित पनहियाँ ||
कबहूँ प्रथम ज्यों जाइ जगावति कहि प्रिय बचन सँवारे |
उठहु तात! बलि मातु बदनपर, अनुज-सखा सब द्वारे ||
कबहूँ कहति यों, बड़ी बार भै, जाहु भूप पहँ, भैया |
बन्धु बोलि जेंइय जो भावै, गई निछावरि मैया ||
कबहूँ समुझि बन-गवन रामको रहि चकि चित्र लिखी-सी |
तुलसिदास वह समय कहेतें लागति प्रीति सिखी-सी ||