भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़ैसला / नील कमल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:11, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दीवार से टिकाकर पीठ
जब रखता हूँ हाथ अपने सिर पर
मुझे आशीर्वाद देते हैं दुनिया के सारे देवता

लड़ाई की थकान कपूर-सी उड़ जाती है
लड़ाई के दृश्य बदलते हैं परदे पर

सामने होते हैं बुश ब्लेयर वाजपेयी बुद्धदेव
बहुत-बहुत और लोग भी

नहीं होता कोई साथ
पिता भाई माँ बहन दोस्त यार

यह लड़ाई कैकेयी को दिया दशरथ का
कोई वचन नहीं जिसके लिए
चौदह वर्षो का वनवास लेना होगा राम को

यह लड़ाई किसी किशोर राजपुत्र के अकेले
चक्रव्यूह मे घुसने की नियति भी नहीं

यह कोई स्वस्थ विरासत भी तो नहीं
जिसे सौंप दूँगा बेटे को
या सिन्दूर की तरह भर दूँगा
पत्नी की माँग में

इस लड़ाई का कोई फैसला
अब हो ही जाना चाहिए

यह आशीर्वाद की बेला नहीं है
यह सिर पर हाथ रखने का वक़्त नहीं
यह हाथों के सिर से ऊपर उठने का वक़्त है ।