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अरण्यकांड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 3

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राघौ गीध गोद करि लीन्हों |
नयन-सरोज सनेह-सलिल सुचि मनहु अरघजल दीन्हों ||

सुनहु लषन! खगपतिहि मिले बन मैं पितु-मरन न जान्यौ |
सहि न सक्यौ सो कठिन बिधाता, बड़ो पछु आजुहि भान्यौ ||

बहु बिधि राम कह्यो तनु राखन, परम धीर नहि डोल्यौ |
रोकि, प्रेम, अवलोकि बदन-बिधु, बचन मनोहर बोल्यौ ||

तुलसी प्रभु झूठे जीवन लगि समय न धोखो लैहौं |
जाको नाम मरत मुनिदुरलभ तुमहि कहाँ पुनि पैहौं ?||