भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेरपा-3 / नील कमल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 6 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…)
ढलती हुई उम्र में
वह चढ़ाई पर था
समुद्र-तल से सात हज़ार चार सौ फीट
ऊँचाई पर,
सैलानियों के रेलमपेल में
शेरपा को कुछ और नहीं भाता,
न मिरिक झील का विस्तार
न बादल, न बारिश, न पहाड़
उसे क्रिप्टोनेरा जैपोनिका के
आकाश छूते दरख़्त भी नहीं लुभाते
उसे बस उतना पता है
कि उसके रास्ते में
बाँए हाथ की ओर खाई
और दाहिने हाथ की तरफ पहाड़ है
इन दोनों के बीच
एक रास्ता है जिस पर
उसे अभी और जाना है ।