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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 8

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मातु !काहेको कहति अति बचन दीन ?
तबकी तुही जानति, अबकी हौं ही कहत,
सबके जियकी जानत प्रभु प्रबीन ||

ऐसे तो सोचहि न्याय निठुर-नायक-रत
सलभ, खग, कुरङ्ग, कमल, मीन |
करुनानिधानको तो ज्यों ज्यों तनु छीन भयो,
त्यों त्यों मनु भयो तेरे प्रेम पीन ||

सियको सनेह, रघुबरकी दसा सुमिरि
पवनपूत देखि भयो प्रीति-लीन |
तुलसी जनको जननी प्रबोध कियो,
"समुझि तात! जग बिधि-अधीन ||