(37)
करुनाकरकी करुना भई |
मिटी मीचु, लहि लङ्क सङ्क गै, काहूसो न खुनिस खई ||
दसमुख तज्यो दूध-माखी-ज्यौं, आपु काढ़ि साढ़ी लई |
भव-भूषन सोइ कियो बिभीषन मुद मङ्गल-महिमामई ||
बिधि-हरि-हर, मुनि-सिद्ध सराहत, मुदित देव दुन्दुभी दई |
बारहि बार सुमन बरषत, हिय हरषत कहि जै जै जई ||
कौसिक-सिला-जनक-सङ्कट हरि भृगुपतिकी टारी टई |
खग-मृग सबर-निसाचर, सबकी पूँजी बिनु बाढ़ी सई ||
जुग-जुग कोटि-कोटि करतब, करनी न कछू बरनी नई |
राम-भजन-महिमा हुलसी हिय, तुलसीहूकी बनि गई ||