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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 31 से 40 तक/पृष्ठ 8
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मञ्जुल मूरति मङ्गलमई |
भयो बिसोक बिलोकि बिभीषन, नेह देह-सुधि-सींव गई ||
उठि दाहिनी ओरतें सनमुख सुखद माँगि बैठक लई |
नखसिख निरखि-निरखि सुख पावत भावत कछु, कछु और भई ||
बार कोटि सिर काटि, साटि लटि, रावन सङ्करपै लई |
सोइ लङ्का लखि अतिथि अनवसर राम तृनासन-ज्यों दई ||
प्रीति-प्रतीति-रीति-सोभा-सिर, थाहत जहँ जहँ तहँ घई |
बाहु-बली, बानैत बोलको, बीर बिस्वबिजई जई ||
को दयालु दूसरो दुनी, जेहि जरनि दीन-हियकी हई ?
तुलसी काको नाम जपत जग जगती जामति बिनु बई ||