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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 31 से 40 तक/पृष्ठ 9

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सब भाँति बिभीषनकी बनी |
कियो कृपालु अभय कालहुतें, गै संसृति-साँसति घनी ||

सखा लषन-हनुमान, सम्भु गुर, धनी राम कोसलधनी |
हिय ही और, और कीन्हीं बिधि, रामकृपा औरै ठनी ||

कलुष-कलङ्क-कलेस-कोस भयो जो पद पाय रावन रनी |
सोइ पद पाय बिभीषन भो भव-भूषन दलि दूषन-अनी ||

रङ्क-निवाज रङ्क राजा किए, गए गरब गरि गरि गनी |
राम-प्रनाम महामहिमा-खनि, सकल सुमङ्गलमनि-जनी ||

होय भलो ऐसे ही अजहुँ गये राम-सरन परिहरि मनी |
भुजा उठाइ, साखि सङ्कर करि, कसम खाइ तुलसी भनी ||