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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 4

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दीन-हित बिरद पुराननि गायो |
आरत-बन्धु, कृपालु, मृदुल-चित जानि सरन हौं आयो ||

तुम्हरे रिपुको अनुज बिभीषन, बंस निसाचर जायो |
सुनि गुन-सील-सुभाउ नाथको मैं चरननि चितु लायो ||

जानत प्रभु दुख-सुख दासनिको, तातें कहि न सुनायो |
करु करुना भरि नयन बिलोकहु, तब जानौं अपनायो ||

बचन बिनीत सुनत रघुनायक हँसि करि निकट बुलायो |
भेण्ट्यो हरि भरि अंक भरत-ज्यों, लङ्कापति मन भायो ||

करपङ्कज सिर परसि अभय कियो, जनपर हेतु दिखायो |
तुलसिदास रघुबीर भजन करि को न परमपद पायो ?||