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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 9
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अबलौं मैं तोसों न कहे री |
सुन त्रिजटा! प्रिय प्राननाथ बिनु बासर निसि दुख दुसह सहे री ||
बिरह बिषम बिष-बेलि बढ़ी उर, ते सुख सकल सुभाय दहे री |
सोइ सीञ्चिबे लागि मनसिजके रहँट नयन नित रहत नहे री ||
सर-सरीर सूखे प्रान-बारिचर जीवन-आस तजि चलनु चहे री |
तैं प्रभु सुजस-सुधा सीतल करि राखे, तदपि न तृप्ति लहे री ||
रिपु-रिस घोर नदी बिबेक-बल, धीर-सहित हुते जात बहे री |
दै मुद्रिका-टेक तेहि औसर, सुचि समिरसुत पैरि गहे री ||
तुलसिदास सब सोच पोच मृग मन-कानन भरि पूरि रहे री |
अब सखि सिय सँदेह परिहरु हिय, आइ गए दोउ बीर अहेरी ||