भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 9

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 9 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(49)

अबलौं मैं तोसों न कहे री |
सुन त्रिजटा! प्रिय प्राननाथ बिनु बासर निसि दुख दुसह सहे री ||

बिरह बिषम बिष-बेलि बढ़ी उर, ते सुख सकल सुभाय दहे री |
सोइ सीञ्चिबे लागि मनसिजके रहँट नयन नित रहत नहे री ||

सर-सरीर सूखे प्रान-बारिचर जीवन-आस तजि चलनु चहे री |
तैं प्रभु सुजस-सुधा सीतल करि राखे, तदपि न तृप्ति लहे री ||

रिपु-रिस घोर नदी बिबेक-बल, धीर-सहित हुते जात बहे री |
दै मुद्रिका-टेक तेहि औसर, सुचि समिरसुत पैरि गहे री ||

तुलसिदास सब सोच पोच मृग मन-कानन भरि पूरि रहे री |
अब सखि सिय सँदेह परिहरु हिय, आइ गए दोउ बीर अहेरी ||