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राग केदारा
कहु, कबहुँ देखिहौं आली! आरज-सुवन |
सानुज सुभग-तनु जबतें बिछुरे बन,
तबतें दव-सी लगी तीनिहू भुवन ||
मूरति सूरति किये प्रगट प्रीतम हिये,
मनके करन चाहैं चरन छुवन |
चित चढ़िगो बियोग-दसा न कहिबे जोग,
पुलक गात, लागे लोचन चुवन ||
तुलसी त्रिजटा जानी, सिय अति अकुलानी
मृदु बानी कह्यौ ऐहैं दवन-दुवन |
तमीचर-तम-हारी सुरकञ्ज-सुखकारी
रबिकुल-रबि अब चाहत उवन ||