भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 7
Kavita Kosh से
(47)
जानकी-त्रिजटा-संवाद
राग जैतश्री
कब देखौङ्गी नयन वह मधुर मूरति ?
राजिवदल-नयन, कोमल, कृपा-अयन,
मयननि बहु छबि अंगनि दुरति ||
सिरसि जटा-कलाप, पानि सायक,
चाप, उरसि रुचिर बनमाल लूरति |
तुलसिदास रघुबीरकी सोभा सुमिरि,
भई है मगन नहि तनकी सूरति ||