युग-पुरूषों की हँसी, युग-बोध से परे है
इनकी नपी तुली-हँसी में
पुरूषोचित अहं बोलता है
पृथ्वी - समुद्र - आकाश की मर्यादा का
इन्हें ज्ञान होता है
इसलिए ये शांति-वार्ता की शर्तें
भंग नहीं करते
ये पाताल-सुरंगो में हँसते हैं ।
युग-पुरूषों की हँसी, युग-बोध से परे है
इनकी नपी तुली-हँसी में
पुरूषोचित अहं बोलता है
पृथ्वी - समुद्र - आकाश की मर्यादा का
इन्हें ज्ञान होता है
इसलिए ये शांति-वार्ता की शर्तें
भंग नहीं करते
ये पाताल-सुरंगो में हँसते हैं ।