(32)
पुत्रि! न सोचिए आई हौं जनक-गृह जिय जानि |
कालिही कल्यान-कौतुक, कुसल तव, कल्यानि ||
राजरिषि पितु-ससुर प्रभु पति, तू सुमङ्गलखानि |
ऐसेहू थल बामता, बड़ि बाम बिधि की बानि ||
बोलि मुनि कन्या सिखाई प्रीति-गति पहिचानि |
आलसिन्हकी देवसरि सिय सेइयहु मन मानि ||
न्हाइ प्रातहि पूजिबो बट बिटप अभिमत-दानि |
सुवन-लाहु, उछाहु दिन दिन, देबि, अनहित-हानि ||
पार-ताप-बिमोचनी कहि कथा सरस पुरानि |
बालमीकि प्रबोधि तुलसी, गई गरुइ गलानि ||