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मेाकोबिधु बदन बिलोकन दीजै।/ तुलसीदास

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मोको बिधुबदन बिलोकन दीजै |

राम लषन मेरी यहैं भेण्ट, बलि, जाउ, जहाँ मोहि मिलि लीजै ||

सुनि पितु-बचन चरन गहे रघुपति, भूप अंक भरि लीन्हें |

अजहुँ अवनि बिदरत दरार मिस सो अवसर सुधि कीन्हें ||

पुनि सिर नाइ गवन कियो प्रभु, मुरछित भयो भूप न जाग्यो |

करम-चोर नृप-पथिक मारि मानो राम-रतन लै भाग्यो ||

तुलसी रबिकुल-रबि रथ चढ़ि चले तकि दिसि दखिन सुहाई |

लोग नलिन भए मलिन अवध-सर, बिरह बिषम हिम पाई ||