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रहहु भवन हमरे कहे, कामिनि! / तुलसीदास

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रागबिलावल

रहहु भवन हमरे कहे, कामिनि!

सादर सासु-चरन सेवहु नित, जो तुम्हरे अति हित गृह-स्वामिनि ||

राजकुमारि! कठिन कण्टक मग, क्यों चलिहौ मृदु पद गजगामिनि |

दुसह बात, बरषा, हिम, आतप कैसे सहिहौ अगनित दिन जामिनि ||

हौं पुनि पितु-आग्या प्रमान करि ऐहौं बेगि सुनहु दुति-दामिनि |

तुलसिदास प्रभु बिरह-बचन सुनि सहि न सकी, मुरछित भै भामिनि ||