भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वापसी / मोहन कुमार डहेरिया

Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:17, 30 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन कुमार डहेरिया |संग्रह=उनका बोलना / मोहन कुमार डहे...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


होती है
एक - न - एक दिन सभी की वापसी

कोई कोलम्बस-सा लौटता है नयी धरती की खुशबू से गमकता
कोई लौटता पहन चीखों का ताज अपनी कौम के बीच
कोई लौटता अपनी स्मृतियों से फूटती प्रकाश की बेहद
पतली रेखा के सहारे
लौटता कोई दबे पाँव शर्म की घनी झाड़ीयों के पीछे-पीछे

किसी के लौटते ही आसमान से बरसते फूल
किसी की वापसी पर हलक में फँस जाती जुबान
पिता की देहरी पर आ गिरती जब बेटी की दहकते कोयले जैसी
देह

अब करे तो करे कोई दावे
पाले चाहे मुगालते
कितना भी वजनी हो सीने से बँधा संकल्प का पत्थर
कितना भी गहरा हो प्रेम का गोता
उछालती ही है ऊपर एक - न - एक दिन समय की नदी
प्रेमियों की देह

कोई लौटता है अपनी बन्दूक को सितार-सा बजाता
किसी की आत्मा की लौ में पहले से ज्यादा धुआँ
लौटा हो जैसे ईश्वर से गहरी बहस के बाद

होती है
एक - न - एक दिन सभी की वापसी