भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भर्‌यो समंदर धूड़ सूं / नीरज दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:56, 19 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{KKCatKa…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन रै पांख्यां लागी
हियै ऊंडी आसा जागी
न्हासतां-न्हासतां
म्हैं कठै-कठै नीं पूग्यो

भळै सामीं ऊभो हो
भर्‌यो समंदर धूड़ सूं
धोरै माथै
भरमावतो भरम

आस अमर धन म्हारो
भटकूं इण रिंधरोही
मालक! मरणो है मंजूर
पण तिरसायो मत मार!