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बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये / गुलाब खंडेलवाल

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बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये
देखिये बात क्या बने, कुछ तो बना के कह गये

कहने की ताब थी न पर, शह उनकी पाके कह गये
जीने की बेबसी को हम सुर में सजाके कह गये

आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या!
कह न सके सके थे जो कभी मस्ती में आके कह गये

भौंहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया
फिर भी जो अनकहा था वह पलकें झुकाके कह गए

काँटोंभरे गुलाब को कोई बड़ा बताये क्यों
माना कि बात वह भी कुछ, खुशबू उड़ाके कह गए