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यह तो वेला है ढलती रही / गुलाब खंडेलवाल
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यह तो वेला है ढलती रही
उम्र भर किसकी चलती रही!
हम किसी और से क्या कहें!
जब ये क़िस्मत ही छलती रही
प्यार ने झट उन्हें पा लिया
साधना हाथ मलती रही
एक लौ आँधियों में बुझी
और बुझकर भी जलती रही
फिर न आये पलटकर गुलाब
लाख दुनिया मचलती रही