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हमारे सामने आओ कि हम भी देख सकें / गुलाब खंडेलवाल

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हमारे सामने आओ कि हम भी देख सकें
नज़र नज़र से मिलाओ कि हम भी देख सकें

हँसी तो होठों पे लाओ कि हम भी देख सकें
कुछ ऐसे प्यार दिखाओ कि हम भी देख सकें

ये कैसा खेल है आँखों की ओट होता रहे!
कभी तो परदा हटाओ कि हम भी देख सकें

हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी
हटो भी काली घटाओं! कि हम भी देख सकें

गये किधर वे उमंगो भरे बहार के दिन
दिया कोई तो जलाओ कि हम भी देख सकें

सुना है तुमने उगाए हैं पुतलियों में गुलाब
हमें भी पास बुलाओ कि हम भी देख सकें