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यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम / गुलाब खंडेलवाल
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यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम
जैसे मिल जाय भटकते हुए राही को मुकाम
हाथ भर दूर ही रहता है किनारा हरदम
हमको यह डाँड चलाते ही हुई उम्र तमाम
फिर एक बार कहो दिल से वहीं लौट चलें
सुबह हुई थी जहाँ अब वहीं हो प्यार की शाम
कोई मंज़िल है मिली गुमराही में भी हमको
यों तो दुनिया कि निगाहों में हम रहे नाकाम
इस तरह गोद में काँटों के सो रहे हैं गुलाब
जैसे आया हो तड़पने से दो घड़ी आराम