भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँखों-आँखों मुस्कुराना ख़ूब है / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:05, 2 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंड…)
आँखों-आँखों मुस्कुराना ख़ूब है!
प्यार यह हमसे छिपाना खूब है!
एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
लौट जाने का बहाना ख़ूब है!
बेकहे आये, चले भी बेकहे
खूब था आना, ये जाना ख़ूब है!
हर क़दम पर, हर घड़ी हो साथ-साथ
सामने फिर भी न आना ख़ूब है!
भूल है अपना समझ लेना गुलाब
रंग उन आँखों में, माना, ख़ूब है!