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कहाँ आ गए चलके हम धीरे-धीरे / गुलाब खंडेलवाल

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कहाँ आ गए चलके हम धीरे-धीरे
कि रुकने लगे हैं क़दम धीरे-धीरे

जो हल्की-सी दिल में कसक प्यार की थी
बनी ज़िन्दगी भर का ग़म धीरे-धीरे

कभी कोई मंज़िल भी मिलकर रहेगी
बढ़ाता चल, ऐ दिल! क़दम धीरे-धीरे

थीं गुलज़ार ये बस्तियां जिनके दम से
गए वे कहाँ बेरहम धीरे-धीरे!

कहाँ एक दीवाना था जो शहर में!
हुई उसकी चर्चा भी कम धीरे-धीरे

गुलाब एक नाचीज़-सी चीज़ थे पर
ग़ज़ब ढा रही है क़लम धीरे-धीरे