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आदमी और क़िताबें / प्रयाग शुक्ल

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इन्तज़ार करते हैं आदमी

कोई पढ़े उनको !

लिखते हैं क़िताबें आदमी ।

करती हैं क़िताबें इन्तज़ार

पढ़े जाने का ।