भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िन्दगी को यों ही भरमाया किये / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:54, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
ज़िन्दगी को यों ही भरमाया किये
प्यार को सपनों से बहलाया किये
प्यार धोखा ही सही पर, आपसे
हम ये धोखा भी कभी खाया किये
दे गयी हर साँस कोई दुख नया
जन्म लेने की सज़ा पाया किये
'वह भी तो होंगे किसीके प्यार में'
बेकली को दिल की समझाया किये
एक ही शीशे का दिल था, जिसको हम
लेके हर पत्थर से टकराया किये
सर झुका लेते हैं अब कुछ सोचकर
नाम सुनकर जो तड़प जाया किये
कोई यों लगता है हरदम चल रहा
मेरे सर पर प्यार की छाया किये
गीत ये छू उनके होठों के गुलाब
सादगी में भी ग़ज़ब ढाया किये