भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी को यों ही भरमाया किये / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:55, 7 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ज़िन्दगी को यों ही भरमाया किये
प्यार को सपनों से बहलाया किये

प्यार धोखा ही सही पर, आपसे
हम ये धोखा भी कभी खाया किये

दे गयी हर साँस कोई दुख नया
जन्म लेने की सज़ा पाया किये

'वह भी तो होंगे किसीके प्यार में'
बेकली को दिल की समझाया किये

एक ही शीशे का दिल था, जिसको ले
हम हरेक पत्थर से टकराया किये

सर झुका लेते हैं अब कुछ सोचकर
नाम सुनकर जो तड़प जाया किये

कोई यों लगता है हरदम चल रहा
मेरे सर पर प्यार की छाया किये

गीत ये छू उनके होठों के गुलाब
सादगी में भी ग़ज़ब ढाया किये