भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विडम्बना / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:29, 5 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह= }} हाथी के दुश्मन हो गए हाथी दाँ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हाथी के दुश्मन हो गए हाथी दाँत,

गेंडे के दुश्मन उसी के सींग,

हिरनों का बैरी हुआ उन्हीं का चर्म,

शेरों-बाघों की शत्रु उन्हीं की खाल और अवयव.

विषधर का शत्रु हुआ उसी का विष,

समूर की ज़ान का गाहक हुआ उसी का लोम,

इसी तरह

प्रेमियों की जान ली प्रेम ने

सुकरात को मारा सत्य ने,

ईसा को प्रेम ने,

और करूणा ने कृष्ण को

गाँधी को मारा गोडसे ने नहीं,

गाँधी के उदात्त ने.

नदी का शत्रु हुआ उसका प्रवाह,

पहाड़ को डसा ऊँचाई ने,

और वनों की देह छलनी की काठ ने.

इसी तरह

इसी तरह

आदमी के भीतर

आदमी को मारा

आदमी के गुमान ने?