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वहीं जो पाँव ठिठक जाय, क्या करे कोई / गुलाब खंडेलवाल
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वहीं जो पाँव ठिठक जाय, क्या करे कोई!
नज़र जो खुद ही बहक जाय, क्या करे कोई!
चला तो बाँध के जीवन में उमीदों की गाँठ
मगर जो डोर सरक जाय, क्या करे कोई!
हज़ार प्यार चकोरी को चाँद से है, मगर
घटा जो चाँद को ढँक जाय, क्या करे कोई!
लटों को उलझी हुई ज़िन्दगी की सुलझाते
किसी का हाथ जो थक जाय, क्या करे कोई!
गुलाब छिपके भी रह लेंगे डालियों में मगर
नज़र जो उनकी अटक जाय, क्या करे कोई!