भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम उनके प्यार में जगते रहे हैं सारी रात / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हम उनके प्यार में जगते रहे हैं सारी रात
ख़ुद अपने आप को ठगते रहे हैं सारी रात

ये क्या हुआ कि सुबह उनकी एक झलक न मिली,
गले से आके जो लगते रहे हैं सारी रात!

धधक के बुझ भी गए हों, हम उनसे अच्छे हैं
जो बेजले ही सुलगते रहे हैं सारी रात

हज़ार बार जिगर में समा चुके हैं, मगर
वे अजनबी से ही लगते रहे हैं सारी रात

कभी तो पायेंगे काग़ज़ गुलाब की रंगत
हम अपने ख़ून से रंगते रहे हैं सारी रात