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ज़िन्दगी दर्द का दाह है / गुलाब खंडेलवाल

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ज़िन्दगी दर्द का दाह है
प्यार छाहोंभरी राह है

जलते हैं आँसुओं के दिए
उम्र अब आह ही आह है

मिल ही जायेंगे फिर हम कहीं
राह भी है जहाँ चाह है

किसने अपनी लटें खोल दीं
चाँदनी पड़ गयी स्याह है!

छेद यों बाँसुरी में कई
कुछ तो सुर का भी निर्वाह है

जब वही बीच से उठ गए
अब न गाने का उत्साह है

हमने होठों के चूमे गुलाब
किसको काँटों की परवाह है!