भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतर्द्वंद्व / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 9 जुलाई 2011 का अवतरण
कैनवस पर उतरती
तुम्हारी तस्वीर
मैं बनाता हूं
मिट-मिट जाती है
रंग फैल जाते हैं
धब्बे बन आते हैं
और तूलिका तोड़कर
बैठ जाता हूं चुपचाप
फिर ढूंढता हूं - नये रंगों को
नई रेखाओं को
जोड़ता हूं नये सिरे से
नये ब्रश के साथ
किन्तु उसकी अंजली में
सज जाता है एक प्रस्तर-खंड
क्योंकि हो गया था
रंगों का बिखराव ही इस तरह।