भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सेलफ़ोन / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 9 जुलाई 2011 का अवतरण
सेलफ़ोन की घंटी बजती है
वह दौड़ पड़ती है
उठाती है, कानों में लगाती है
वह कुलबुलाती है
फिर कसमसाती है
फिर रौ में बह जाती है
सेलफ़ोन से आवाज़ें नहीं
दो हाथ निकले थे
हाथों का कसाव बढ़ता है
वह और बहती है
जब तक दोनों हाथ
सेलफ़ोन की आस्तीन में
वापस नहीं चले जाते
समय के दौर में
शब्दों/मुहावरों के अर्थ बदल जाते हैं
आस्तीन के हाथ
और आस्तीन के सांप
अलग-अलग ढंग से
परिभाषित हो जाते हैं।