भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जलते शहर का दर्द / शहंशाह आलम
Kavita Kosh से
योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 10 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहंशाह आलम |संग्रह=वितान }} {{KKCatKavita}} <poem> ज़िक्र छिड…)
ज़िक्र छिड़ा जब दौरे-अजब का
झील में रोया है चांद शब का
सीना ताने कब से खड़ा है
हौसला पर्वत का है ग़ज़ब का
जलते शहर का दर्द न जाने
सूरज निकला बस मतलब का
मांगा लहू जब शे’रो-सुख़न ने
ग़म में ‘शहंशाह’ डूबा कब का।