भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शेष रहे हिलते रूमाल / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:55, 11 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ट्रेन गई
शेष रहे हिलते रूमाल
लौट रहे क़दमों की थकी हुई चाल
 
मौन हुए प्लेटफार्म
पटरियाँ उदास
ऊब-थकन-सन्नाटे
लौट आए पास
 
पिछली घटनाओं के सिर्फ़ बचे ख्याल
 
यादों में काँप रहे
कुछ दिन के साथ
विदा उन्हें देते
या जुड़े हुए हाथ
 
सब कुछ है ठहर गया - घर-बगिया-ताल
 
वापस सुख आएँगे
कितने दिन बाद
सोच रहीं संध्याएँ
बीते संवाद
 
आकृतियाँ गुमसुम हैं - खाली दीवाल